Tuesday 30 May 2017

ईश्वर वाणी-212, मानव देह

ईश्वर कहते कहते हैं, "हे मनुष्यों प्राणियो के लिये जल बेहद महत्वपूर्ण
है, इसी जल तत्व के कारण ही जीव भौतिक देह धारण कर धरती लोक पर आया, ये
ही जल तत्व पूरी सृष्टि के निर्माण व् जीवन  का आधार बना।
हे मनुष्यों यदि तुम्हारे शरीर जिसमे सत्तर प्रतिशत से अधिक जल तत्व
मैजूद है, यदि कम होता है तो धीरे धीरे अनेक बीमारियों को निमंत्रण देता
है ये निमंत्रण एक चेतावनी होती है तुम्हारे लिये ताकि तुम चेत जाओ और
अपनी देह का ध्यान रखो।
हे मनुष्यों जैसे एक 'गाडी' को चलने के लिए ड्राईवर की, ईधन की, पानी की
आवश्यकता होती है वैसे है ही शरीर रुपी गाडी के लिए आत्मा रुपी चालाक,
भोजन रुपी ईधन तथा जल की आवश्यकता होती है।
यदि गाडी में ईधन व् चालक तो है पर पानी कम होता गया फिर धीरे धीरे इसका
इंजन बंद हो कर रुक जाता है वैसे ही ये भौतिक देह है, अगर भोजन व् आत्मा
तो है इसमें लेकिन जल की कमी (चाहे रक्त रूप में अथवा जल रूपमे) तब भी ये
देह धीरे धीरे कार्य करना बंद कर देती है और अंत को प्राप्त होती है।
हे मनुष्यों ये न भूलो की ये देह एक गाडी के समान ही है और तुम्हें
तुम्हारे उद्देश्य हेतु मेरा दिया गया एक उपहार है, तुम्हारी आत्मा देह
रुपी गाडी में यात्रा कर प्राणी व् जगत का कल्याण करने हेतु ही यहाँ आई
है, अतः इसे व्यर्थ के कार्य व् पाप कर्मो में मत लगाओ, अपने कर्म पहचानो
और उसमे जीवन लगाओ।

हे मनुष्यों पृथ्वी पर आधे से अधिक स्थान पर समंदर मौज़ूद है, यदि इसका जल धीरे धीरे कम होने लगे तो पृथ्वी पर कैसा विशाल संकट आ जायेगा??

जल की उपयोगिता न सिर्फ तुम्हारी देह के लिए अपितु पूरी श्रष्टी के लिये आवश्यक है।

आकाशीय दिव्य सागर जिससे समस्त ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है, यदि इन भौतिक आँखों से कोई उन्हें देख सकता, छु सकता तो निःसंदेह मानव उसे नुक्सान पहुचाने का प्रयत्न करता, इसलिये जितने तारे व् गृह नक्षत्र नही है इससे विशाल है ये सागर जो सब कुछ अपने हाथो में संभाले हुये है और मानव जाती के लिये एक प्रतिरूप अथवा झांकी समस्त ब्रह्माण्ड की यहाँ दिए हुए है, ताकि मानव उसका अध्ध्यन कर कुछ ज्ञान ब्रह्माण्ड का प्राप्त कर सके

हे मनुष्यों वो अनंत अजन्मा अविनाशी सागरो का महासागर मैं ही हूँ मैं ईश्वर हूँ।"

कल्याण हो

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