Thursday 18 May 2017

ईश्वर वाणी-209, मानव देह एक मंदिर

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों ये तुम्हारी देह है ये एक मंदिर के समान है, तुम्हारी आत्मा उस मंदिर में विराजित भगवान के समान है, जब तुम अपने कर्मो से इस मंदिर को दूषित कर्ते हो तो अंदर बेठी ईश्वर रुपी आत्मा तुम्हें ऐसा करने से रोकती है किंतु स्वार्थ में अंधे तुम उसकी नही सुनते और इस देह रुपी मंदिर को मैला ऐसा कर देते हो की फिर ये पवित्र और साफ़-स्वच्छ नही हो पाता।

हे मनुष्यों जैसे बाहर के मंदिर रूपी भवन को समय समय पर देखभाल की आवश्यकता होती है, अंदर देखा जाता है की मंदिर की मूरत खंडित तो नही हो गयी,अगर हुई है तो दूसरी लगाई जाती है, वैसे ही तुम्हारी देह रुपी इमारत है, इसे अनेक कर्म करने पड़ते है, पर समय समय पर ध्यान देते रहो की कही कोई पाप कर्म न हो जाए, अगर मलिनता कहि आ रही है तो वही रुक जाओ और और इमारत को ठीक करो, समय समय पर ह्रदय में विराजित अंर्तआत्मा का निरीक्षण करो कही वो दूषित हो कर खंडित तो नहीं हो गयी, यदि वो खंडित हो गयी है,पाप कर्म में लग गयी है तो सुधारो अपने कर्म, आत्मा को दूषित होने से बचाओ, ये भौतिक मूरत नही जो बदली जाये इसलिये श्रेष्ट कर्म करो ताकि ये देह रुपी मन्दिर व् आत्मा रुपी भगवान सदा इसमें स्थापित रहे, जगत का कल्याण करे।"



कल्याण हो

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