Thursday 18 May 2017

ईश्वर वाणी-२०८, ईश्वर को कष्ट

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यदि तुम संसार में किसी भी जीव से घृणा करते हो, किसी भी जीव का तिरस्कार करते हो तो तुम मेरा भी अनादर करते हो, मेरा भी तिरस्कार करते हो।

हे मनुष्यों ये न भूलो समस्त संसार व् समस्त जीव मैंने ही बनाये है, सभी से मुझे समान प्रेम है, ऐसे में यदि किसी को तुम कष्ट देते हो तो तुम मुझे कष्ट देते हो।

माता-पिता की  चाहे दस संतान हो, कोई बहुत सुन्दर, कोई कम सुन्दर, कोई असुंदर, कोई विकलांग, कोई मन्द बुद्धि, कोई तेज़ तो कोई सीधा, माता-पिता तो सभी से ही समान प्रेम भाव रखते है, किंतु यदि कोई उनके बालक जो असुंदर, मंद बुद्धि, सीधा है उसको अपमानित करे, उसका तिरस्कार करे, भले ऐसा करने वाले माता-पिता के सुंदर बालकों में से ही कोई एक हो, माता-पिता को कष्ट तो होगा ही, और माता-पिता के समझाने पर भी उन्हें अगर समझ न आये तो वो उन्हें दंड भी देते है।

हे मनुष्यों वैसे ही अगर तुम मेरे किसी बालक (प्रत्येक जीव) को कष्ट देते हो, घृणा करते हो, नुक्सान पहुचाते हो तो निश्चित ही मेरी रचना का उपहास करते हो और इसके लिये दंड के भागी बनते हो"।

कल्याण हो


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