Wednesday 25 January 2012

एक मुसाफिर हूँ मैं

 एक मुसाफिर हूँ मैं रास्तों से बेखबर हूँ मैं, क्या है मंजिल मेरी और किस ऒर जाना है मुझे इन सबसे अनजान हूँ मै,  
वक्त के तूफानों से हार हुआ एक इंसान हूँ मैं, मिली मुझे हर पल बेगुअनाह होने की सजा, आज अपनी ही नज़रों में गुनेहगार हूँ मैं,
वक्त के साथ अपनाया मुझे जहां ने और वक्त के साथ ही ठुकराया मुझे हर इंसान ने , वक्त और इंसान के हाथ का  क्या खिलौना हूँ मैं  है ये सवाल मेरा खुद मुझसे, एक वक्त था जब हौसला था ज़िन्दगी जीने का,
ज़ज्बा था दुनिया जीत लेने का,और आज फैसला है खुद को खुद से ही जुदा कर लेने का,मंजिलों और रास्ते से अनजान मेरे कदम बड़ते जा रहे  हैं,,
काश मिल जाए कोई सही रास्ता मुझे जो ले जा सके मंजिल तक मुझे,आज सागर की उस लहर की तरह हु मैं जो साहिल से टकरा कर वापस सागर में लौट आती है, नहीं मिलती चाह कर भी मंजिल उसे, 
उन्ही लहरों की तरह हूँ मैं जो मंजिल तक पहुच कर भी उसे पा न सका 
आज भूला हुआ एक किनारा ढूँढता हूँ मैं ,ज़िन्दगी ढूँढ़ते हुए मौत को गले लगाने के ही  बस  बहाने ढूँढता  हूँ मैं, सूनी सूनी राहों पर भटकता हुआ एक राही हूँ मैं, रास्तों से बेखबर एक मुसाफिर हूँ मै।।

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