Friday 20 January 2012

सोचता है मेरा ये दिल बार-बार

 सोचता है मेरा ये दिल बार-बार क्यों होता है हमे किसी अजनबी से प्यार, क्यों रहता है सिर्फ उसके लिए ही ये दिल बेकरार, क्यों होता है बस उससे ही बार-बार मिलने का इंतज़ार, क्यों कोई अजनबी ऐसे दिल में आ जाता है, 
जो कर के अपनों से दूर उसके पास ले आता है , क्यों तोड़ देते हैं रिश्ते अपनों के उस गेर के लिए ,कहते है वो की ये तो दिल का मामला है, पर अगर ये सच में  दिल का मामला है तो प्यार में पड क्यों अपनों का ही दिल तोड़ देते हैं,क्या प्यार वो उनसे नहीं करते जिनका दिल तोड़ कर उस अजनबी से मोहब्बत किया वो करते हैं,

क्यों भुला देते हैं  लोग अपनों की वो बाते जिन्होंने जाने कितने है दर्द सह कर खुशियों के पल थे  उन्हें दिए,  पर उस अजनबी के साथ को हर ख़ुशी मान कर क्यों अपनों के त्याग को भुला कर उस अजनबी के हो जाते हैं लोग ,क्यों उस अजनबी की मीठी बातो में आ कर अपनों से दूर चले जाते हैं लोग ,


क्या इसी का नाम है प्यार जो एक तरफ दिल 
का रिश्ता है कहलाता तो दूसरी तरफ है अपनों का ही दिल दुखाता ,सोचता है ये दिल मेरा बार-बार प्यार तो सुना था  कि एक नाम है  त्याग का , प्यार तो नाम है  दिलो को जोड़ने  के  एक हसीं अहसास का , 


पर क्यों ये अपनों से ही हमे ये जुदा करता है, क्यों किसी गेर को अपना बनाते हुए हमे अपनों को ही खोना पड़ता है ,

क्या  इसी का नाम प्यार है, क्या ये ही मोहब्बत का संसार है सोचता है मेरा ये दिल बार-बार क्या   इसी का नाम प्यार ।

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