Monday 11 September 2017

ईश्वर वाणी-223-सृष्टि का कुंभार

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि मैं ही सृष्टि निर्माता हूँ, मैं ही कल आज और कल हूँ, मैं आदि हूँ अनंत हूँ,
मैं एक हूँ और मैं ही अनेक हूँ, तुम मुझे एक मैं भी प्राप्त कर सकते हो और अनेक में भी क्योकि मैं ही अनेको में अनेक और एक में एक हूँ अर्थात तुम मुझे एकेश्वर के रूप में भी पाते हो और अनेक ईश्वर के रूप में भी।

हे मनुष्यों मैं ही सृष्टि का कुंभार हूँ, मैंने ही सबसे पहले शक्ति रुपी चाक का निर्माण किया जिससे समस्त ब्रह्माण्ड एवं समस्त जीव जन्तु जन्मे, उस शक्ति रुपी चाक को चलाने वाला वो कुंभार मैं ही हूँ, मेरी कृपा दृष्टी से तुम सबके अंदर समस्त ब्रमांड व् समस्त जीवो के अंदर वो चाक है तथा उसको चलाने वाला मैं ही हूँ, बिना उस चाक के संसार में कुछ भी संभव नही है, शक्ति रुपी चाक पर ही समस्त श्रष्टि चल रही है है और उसको चलाने वाला मैं ही उसका कुंभार हूँ।

हे मनुष्यों अनेक मान्यताओ के अनुसार सृष्टि के निर्माता, पालन करता व् विध्वंकर्ता अलग हो सकते है, निम्न नाम तुमने उन्हें दिए, पवित्र शाश्त्रो में उनके विषय में पड़ा, किंतु समस्त लीलाओ का जनक व् और विध्वंशकर्ता मैं ही हूँ, मेरी अनुमति और इच्छा के बिना कुछ सम्भव नही है, दुनिया के समस्त पवित्र शाश्त्रो में वरणित अनेक इश्वरिये रूप मेरे ही अंश है जिन्हें तुम विभिन्न नामो से जानते हो, किंतु जब तुम सबमे मेरे नाम व् पवित्र शाश्त्रो व् धार्मिक मान्यताओ को ले कर अराजकता फैलने लगी तब मैंने ही अपने ही एक अंश को धरती पर भेज एकेश्वरवाद की नीव रखी ताकि एक ही ईश्वर में सबकी आस्था हो, पूजा विधि एक हो, धर्म शाश्त्र एक हो ताकि मानव जाती एक हो, किंतु मानव जाती ने इसमें भी भेद ढून्ढ निकाल मेरी व्यवस्था को चुनोती दी है।

हे मनुष्यों ये न भूलो तुम सबका और तुम्हारे चलाने वाले का कुंभार मैं ही हूँ, मैं ही जिसके कारण ये सृष्टि बनी और मैं ही हूँ जिसकी झाया में तुम सब फले फूले और मैं ही तुम्हारा अंत कर दूँगा, यदि तुम मेरी बनाई व्यवस्था में अवरोध ऐसे ही करते गए तो निश्चित ही मैं तुम्हे दंड दूँगा जिसके उत्तरदायी तुम स्वम होंगे, इसलिये सुधर जाओ और मेरे बताये मार्ग पर चल मोक्ष प्राप्ति की और अग्रसर हो।"

कल्याण हो

Sunday 3 September 2017

मुक्तक, कविता, गीत

1-                शायरी

"अगर तुझसे वफ़ा का वादा मैंने न किया होता
तो तेरी तरह मेरा भी आज एक घर बसा होता

तू तो निकली बेवफा कर के किसी और से सगाई
तेरी बेवफा मोहब्बत पर भी वफ़ा की रीत निभाई"

2-                   कविता



"तू आ पास मेरे ये जहाँ तेरे नाम मैं कर दूँ
तू है 'ख़ुशी' मेरी आज जान तेरे नाम में कर दूँ

'मीठी' लगती है हर शाम और सुबह मुझे अब
अपनी 'ख़ुशी' का हर अरमान तेरे नाम में कर दूँ

जीने की वजह बन गए हो तुम मेरी इस कदर
तू आ पास मेरे ये पहचान तेरे में नाम कर दूँ"

3-     गीत-तुमसे है

" तुमसे है हर 'ख़ुशी' मेरी
तुम ही तो हो ज़िन्दगी मेरी-२

'मीठी' ज़िन्दगी का ये अरमां
'ख़ुशी' का हर वो लम्हा
ऐ मेरी हमदम तुम्ही तो हो
तुम ही जीने की वजह मेरी-2

तुमसे है......................

करता हूँ इबादत तेरी
तू ही है हमनशीं मेरी

दूर तुझसे न रह पाउँगा
बिन तेरे मैं मर जाऊँगा
छोड़ न जाना तुम कभी
तुम ही हो 'मीठी ख़ुशी' मेरी-2

रुठोगी जो तुम मुझसे मैं मनाऊंगा
है वादा दूर तुमसे नही में जाऊंगा

मौत भी जुदा नहीं कर पायेगी हमें
तेरे लिए मौत से भी लड़ जाऊंगा-2

है सदा 'मीठी' 'ख़ुशी' की
ये कहता है ज़माना सारा

तुम ही तो अब  बंदगी मेरी
तुम ही तो हो ज़िन्दगी मेरी-2

तुमसे है हर ख़ुशी मेरी
तुम ही तो हो ज़िन्दगी मेरी-4"




Friday 1 September 2017

ईश्वर वाणी-२२२, असली प्रसाद

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम मेरे आराधनालय व् पूजाघर में अनेक धन संपत्ति व् भोज्य वस्तुए भेट करते हो, किंतु यदि तुम मुझे केवल प्रसन्न करने के उद्देश्य से ऐसा करते हो तो मैं तुम्हे बताता हूँ मैं इससे प्रसनन नहीं होता, मुझे प्रसन्न करने के लिए धुप, दीप, पुष्प, फल व् मिष्ठान आदि समर्पित करने की आवश्यकता नही अपितु तुम्हारी सच्ची आस्था ही काफी है।

हे मनुष्यों यदि तुम मुझे प्रसनन करने हेतु आराधनालय या पूजाघर में फल मिष्ठान आदि स्वादिष्ट व्यंजन ले कर जाते हो, यद्दपि तुम्हारी आस्था व् प्रेम है तुम्हारा मेरी ओर इसलिये तुम ये भेट करना चाहते हो किंतु यदि वहा बहुत भीड़ है और तुम्हारा नंबर बहुत पीछे है किंतु तुम देखते हो कोई गरीब भूखा मनुष्य या कोई भूखा पशु या पक्षी तुम्हारे समक्ष है तो तुम क्या करोगे, क्या उस भूख से व्याकुल जीव की सहायता हेतु मुझे भेट में दिए जाने वाले निम्न व्यंजन उस को दे दोगे या अपनी बारी आने की आराधनालय में प्रतीक्षा करोगे ताकि पहले मुझे वो व्यंजन दे कर उसे प्रसाद रूप में सबको बाट सको।

हे मनुष्यों यदि तुम अपनी बारी की प्रतीक्षा में उस भूख से व्याकुल जीव की सहायता नहीं करते और अपनी बारी आने पर पहले मुझे वो व्यंजन अर्पित करते हो ताकि प्रसाद बना सबको उसे खिला सको और मुझे प्रसन्न कर सको तो तुम्हे बताता हूँ तुम मुझे प्रसन्न नही अपितु क्रोधित करते हो, मैं ही गरीब, भूख से व्याकुल मनुष्य व् वो जीव बनके तुम्हारे पास आया क्योंकि आराधनालय में तुम सबसे पीछे खड़े थे, तुम्हारा नंबर न आने को था पर मैं तुमसे तुम्हारे हाथो से ये व्यंजन लेना चाहता था, इसलिये पूजाघर व् आराधनालय से निकल तुम्हारे सामने इस रूप में आया ताकि इसे खा कर अपनी भूख मिटा सकूँ और तुम्हारे व्यंजन को प्रसाद बना सकूँ,किंतु हे मनुष्य तू साक्षात उपस्तिथित भगवान को न पहचान सिर्फ एक मूर्ती में मुझे ढूंढता है और भोग लगाता है, बता तुझसे प्रसन्न में कैसे होयू।

हे मनुष्यों मैं कभी भी किसी भी रूप में तुम्हारे सामने आ सकता हूँ अथवा अपने ही अंश को तुम्हारे पास भेज सकता हूँ, किंतु तुम्हे सचेत रहना है,  मैं कही भी और किसी भी रूप में आ सकता हूँ, इसलिये मुझे प्रसन्न करना है तो मूर्ती के पीछे मत भागो अपितु जिसे तुम्हारी आवश्यकता है उसकी सहायता पहले करो किंतु समय निकाल कर आराधनालय व् पूजाघर अवश्य जाओ और भोग भी अवश्य लगाओ किंतु ये भोग प्रसाद तभी बनेगा जब तुम किसी जरुरतमंड की सहायता में कटौती न कर मुझे ये अर्पित करोगे तभी तुम्हे इसका अनूकूल फल प्राप्त होगा।"

कल्याण हो


Saturday 26 August 2017

चार लाइन्स

"पूछता है दिल ये कैसा गम कैसा अवसाद है
मार रहा इंसा ही इंसा को कैसा ये  फसाद  है
नहीं देती सुनाई उस बेगुनाह  की चीख  उन्हें
खुद को इंसा कहने वाले ये कैसा मानववाद है"





Friday 25 August 2017

गीत-चोरी चोरी

चोरी चोरी दिल मेरा वो ले ही गया
चुपके से दिलमे मेरे वो आ ही गया-२

ना ना बहुत की थी हमने उसे
हाँ हाँ ना की थी हमने उसे-२

धीरे धीरे धड़कन मेरी वो बन ही गया
होले होले दिलमे मेरे वो बस ही गया-२

चोरी चोरी.........................

मोहब्बत का नाम सुना कभी
आशकी की बात सुनी थी कही-२
दिल लगाना भला होता है क्या
इसकी खबर ना दी थी कभी-२

सुना था दिल के चोर है लोग बहुत
सुना था यहाँ लोग चितचोर है बहुत-२

सोचा था ,क्या कोई दिल मेरा भी चुराएगा
सोचा था, क्या कोई करीब मेरे भी आयेगा-२

जाने कैसे उसको पता इस दिलका मिल ही गया
तन्हाई में ये गुल अब यहा तो खिल ही गया-२

आँखों में आँखे ना डाली थी उसने
फिर भी दिल दिलसे मिल ही गया-२

चोरी चोरी............................-४

कविता-पिया मिलन की आस

"करती हूँ तुझे याद, है पिया मिलन की आस
करती हूँ तेरी ही बात, है  मिलन की आस

दिन बीते, माह बीते, बीत गए ये सालो साल रे
प्यासे नेना ढूढे तुझको, है पिया मिलन की आस

चुप है दिल पूछती धड़कन, कहाँ गया मेरा हमदम
खामोश निगाहे पुकारे , है पिया मिलन की आस

कहता है मन, क्यों साथ नहीं मेरा दिलबर मेरा सनम
बीत रही ज़िन्दगी तन्हाई में, है पिया मिलन की आस

टूट कर बिखरे ख्वाब जो मेरे, नहीं अब आँखों में कोई
दूर जा कर भी तू दूर नही, है पिया मिलन की आस

है पता मुझे, नहीं तू करीब मेरे न है दिल के पास
है मोहब्बत तुझसे ही बस, है पिया मिलन की आस

करती हूँ तुझे याद, है पिया मिलन की आस
करती हूँ तेरी ही बात, है  मिलन की आस"-२

ईश्वर वाणी-२२१- राधा और कृष्ण एक ही हैं

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों आज मैं तुम्हे राधा और कृष्ण के विषय में सक्षिप्त  जानकारी देता हूँ, राधा और कृष्ण दो अलग अलग देव नहीं अपितु एक ही थे, यद्धपि उनकी देह अलग थी, एक स्त्री और एक पुरुष था, दोनों का जन्म अलग हुआ किंतु  फिर भी अलग हो कर भी एक थे।

राधा और कोई नहीं श्री कृष्ण की शक्ति थी, जैसे संसार की उत्पत्ति के लिए पहले शक्ति का सृजन मैंने किया वैसे ही श्री कृष्ण के जन्म से पहले उनकी सभी लीलाओ को पूर्ण करने हेतु आदि शक्ति माता राधा रानी रूप में अवतरित हुई, भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार की लीलाओ की पूर्ति हेतु सबसे पहले अपनी शक्ति को भेज, ये न भूले बिना शक्ति के संसार में कुछ भी सम्भव नही है, यही शक्ति उनकी लीलाओ का मूल आधार रही है।

हे मनुष्यों जैसे भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप प्रतेयक पुरुष में नारी रुपी तत्व के होने की शिक्षा देता है वैसे ही राधा स्वरुप कृष्ण की लीलाओ उनकी शक्ति उनकी बुद्धि और कर्तव्य परायणता की भी सीख देता है, यदि राधा न होती तो कृष्ण की बाल लीला क्या इतनी याद की जाती, निःस्वार्थ कोमल और पवित्र प्रेम की सीख जो उन्होंने दी क्या तुम्हे आज मिल पाती।

हे मनुष्यों यहाँ कितने ही पुरुष है जो अपनी पत्नी व् प्रेमिकाओं से खुद को अलग न रख कर एक समझते हो, दिखावे के लिए तो सब कह देते है की हम एक ही तो है किंतु इस शब्द का वास्तविक 
अर्थ तो राधा कृष्ण की इस जोड़ी से पता चलता है, राधा के बिना कृष्ण का वज़ूद ही अधूरा है, भले विवाह न हुआ उनका साथ न रहे एक दूसरे के लेकिन फिर भी वो सदा एक ही रहे कारण राधा कृष्ण की शक्ति उनकी इस समस्त लीला में न सिर्फ उनके साथ रही अपितु बैकुंठ में उनके साथ है,बिना शक्ति अर्थात इस राधा के भगवान किसी भी रूप में अपूर्ण ही है, ये शक्ति ही है जो उनको पूर्ण करती है, इसलिये राधा और कृष्ण दो अलग नहीं अपितु एक ही है।

हे मनुष्यों इस प्रकार तुम अपनी पत्नी या प्रेमिका को चाहे कितना कह दो हम तो एक है किंतु वास्तव में शक्ति रुपी राधा तत्व ही समस्त संसार के अंदर समाया है जिसके कारण ही श्रष्टि चल रही है और अनंत काल तक युही चलती रहेगी, हे मनुष्यों इस प्रकार नारी का सम्मान करो, यदि तुम ऐसा नही करते तो तुम्हारे भीतर शक्ति रुपी राधा क्रोधित होती है और तुम्हे कठोर दंड देती है जिसके फलस्वरूप तुम रोगी व् बीमार होते हो अनेक कष्ट पाते हो, इस प्रकार स्त्रियों का सम्मान करो ताकि प्रतेक जीव की देह में विराजित राधा रानी तुम पर प्रसनं हो कर आशीर्वाद दे।"


कल्याण हो