Friday 20 June 2014

एक बेटी हूँ मैं

एक बेटी हूँ मैं, कही बड़ी तो कही छोटी हूँ मैं,
हूँ कही खुश तो कही रोती हूँ मैं,एक बेटी हूँ मैं
लुटाती हूँ अपनी खुशियाँ अपने घर आँगन में
वही पल पल घुट कर हर  दिन  जीती हूँ मैं,एक बेटी हूँ मैं

ले मुझे अपनी गोद में जन्म पे मेरे सबसे पहले माँ की आँखे ही  भर आई,
जुबाँ से नहीं कहती वो कुछ पर देख मुझे गोद में 
 दिल से उनकी भी है एक आह निकल आई , एक बेटी हूँ मैं,
होंठ रहे  खामोश उनके पर देख मुझे आँखों से उनकी  
अश्को की नदी है बही चली आई, एक बेटी हूँ मैं

नहीं बंटती जन्म पे मेरी यहाँ  मिठाई,
न ही देता है कोई मेरे जन्म पे बधाई,एक बेटी हूँ मैं
दुनिया में आते ही कहते है मुझे लोग  की मैं तो हूँ पराई
एक दिन मेरी तो होगी विदाई,एक बेटी हूँ मैं

बचपन से सुनती हूँ ये ताना, शायद  इसलिए नहीं मिलता
मुझे मेरी पसंद का भी कोई खिलौना,एक बेटी हूँ मैं
हर दिन लड़की होने का दंश में सहती हूँ,
अपनों के ही भेद-भाव का  पल-पल शिकार होती हूँ,एक बेटी हूँ मैं

सुनती हूँ हर दिन बस ये ही बात की बेटी तो होती है धन  पराया,
लिया होगा कर्ज़ा कोई पिछले जन्म में तभी तो
 बेटे ने नहीं बेटी ने इस घर में जन्म है पाया, एक बेटी हूँ मैं
 गेरो की क्या कहु अपनों के सामने रोज़ टूटती और बिखरती हूँ मैं,
अंजानो से क्या आशा करू अपनों से प्रेम और सम्मान की अभिलाषी हूँ मैं, एक बेटी हूँ मैं


ख़ुशी में जहाँ भाई के जन्म पे बाटी जाती है मिठाई, 
देते है लोग  भी जन्म पे उसकी ढेरो बधाई, 
होती हूँ मैं भी खुश, भुला कर अपना दर्द लगाती हूँ लगे उसे, एक बेटी हूँ मैं,
छोटी हो या हूँ बड़ी हर दिन भाई की दुत्कार सहती हूँ,
नहीं करती कोई शिकवा उसकी सबकुछ चुपचाप सहती हूँ मैं, एक बेटी हूँ मैं,


हर दिन देती हूँ बलिदान अपने अरमानो का,
टूट कर बिखरता है ये मन हर दिन मेरे सपनो का, एक बेटी हूँ मैं,
पिता के लिए एक अनचाहा बोझ हूँ मैं,
भाई की मंज़िल का एक रोड़ा हूँ मैं, एक बेटी हूँ मैं,


पति के लिए कुछ नहीं बस एक दासी हूँ मैं,
उसे मतलब नहीं की प्रेम और सम्मान की कितनी प्यासी हूँ मैं ,एक बेटी हूँ मैं,
मतलब नहीं जहाँ में किसी को आखिर  किस की अभिलाषी हूँ मैं,
करती हूँ कुर्बान हर मोड़ पे अपनी ख़ुशी सिर्फ इसलिए की एक बेटी हूँ मैं,


 नहीं मिलता सम्मान मुझे जहाँ से, लूटता है हर दिन मेरा मान यहाँ पे ,
आँखों में अश्क लिए हर दिन जीती हूँ मैं सिर्फ इसलिए एक बेटी हूँ मैं,
 जुदा हो कर भी जुदा नहीं रहती अपनों से  मैं,
दूर जा कर भी पास सदा रही हूँ  मैं,  एक बेटी हूँ मैं


माना बेटो जैसी नहीं मैं, माना जीवन भर पास नहीं मैं,
माना दूर ले जाता है मुझे मेरे अपनों से समाज का ये ताना-बाना एक बेटी हूँ मैं
दूर अपनों से जा कर, गेरो को अपना बना कर अपनों को भी   दिल में बसाती हूँ मैं,
पत्नी बहु और माँ बन कर भी सभी अपने धर्म निभाती मैं, एक बेटी हूँ मैं
बेटे भूल जाए चाहे अपना धर्म पर अपने सभी कर्त्तव्य निभाती मैं क्योंकि एक बेटी हूँ मैं 








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