Tuesday 3 June 2014

मेरी हर याद भी मिटा डाली,


एक नन्ही  सी कली थी, बगीचे मेी खिली थी, माली की लाड़ली दुलारी थी, उसे बहुत प्यारी थी, नाज़ों में पली थी, खिल कर फूल बनने चली थी, बन कर फूल इस बगिया को महकाने में चली थी, पर ना पता था मुझे की खिल कर  कली का फूल बन  बगिया महकाना ज़ुर्म होगा, खिल कर यहा छा जाना हर किसी को नामंज़ूर होगा, बन कर फूल खिली जिस डाली पे माली की ही नियत डोली,

 झूलती थी जिस डाली पे, पत्तियों की शैया पर कभी सर अपना रख कर भी सोती थी, आज उखाड़ फेंक दिया उसीने जिसकी दिन और रात बिन मेरे ना होती थी, करके तबाह मेरा जीवन उसके घर में हर दिन होती  होली और दिवाली , 

 पाला था नाज़ो से जिसने मुझे उसीने मेरी हर पंखुंडई तोड़ डाली, कभी बड़ाई थी रोनक जिस बाग की मैने वहा मेरी जगह किसी और अन्खिलि कली को दे  डाली, दुख नही खुद के पुष्प बन कर टूट कर बिखर जाने का, दुख तो है किस  कदर अपनो ने ही मेरी ज़िंदगी यू उज़ाद डाली, कभी सीने से लगा क रखते थे वो मुझे आज अपनी ज़िंदगी से मेरी हर  याद भी मिटा डाली,मेरी हर  याद भी मिटा डाली, मेरी हर  याद भी मिटा डाली, मेरी हर  याद भी मिटा डाली,

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