Thursday 8 December 2016

ईश्वर वाणी-१६९, आत्मा क्या है

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों जैसे मैने तुम्हें 'परमात्मा' का अर्थ बताया वैसे ही आज आत्मा का अर्थ ब॒ताता हूँ, वही आत्मा जिसके बिना ये देह केवल एक मिट्टी का पुतला है,

आत्मा जो प्रत्येक देह को जीवन प्रदान करती है, आ+त+म+आ अर्थात आत्मा,
आ= आदि
त=  तत्व
म=  मैं
आ= आदि, अनादी, अनंत,अदभुत, अंश, आवश्यक

अर्थात श्रष्टी को व समस्त जीवों को जीवन देने हेतु मैने ही अपने एक आदि अंश को तुम सभी जीवों मैं प्राण डालने हेतु भेजा, इसलिये न इसकी म्रत्यु होती है न कही आत्मा बिना देह के जन्म लेती है, येये आवश्यक आदी से तत्व यानी मुझसे निकल कर अनादी व अनंत काल तक रहती है और एक दिन पुन: मुझमैं मिल जाती है!!

हे मनुष्यों ये आत्मा जो प्रत्येक जीव मैं है वो मेरा ही एक अंश है किंतु मैं उनका अंश नही, मैं उनमैं हूँ पर वो मुझमैं नही, अर्थात जैसे तुम्हारे बालक तुम्हारा ही अंश हैं किंतु वो तुम्हारे माता पिता तो नही आखिर वो बालर ही रहे तुम्हारे, वैसे ही मैं उनमैं हूँ, कन कन मैं हूँ जैसे किसी बहुत बड़े घर का स्वामी, घर की प्रत्येक वस्तु उसकी, हर वस्तु पर उसका अधिकार किंतु वस्तुऔं का स्वामी पर कोई अधिकार नही,

हे मनुष्यों इस पूरी श्रष्टी और जीवन का स्वामी मैं ही हूँ, मेरी द्रष्टी मैं जिस देह त्याग को तुम म्रत्यु कह भय खाते हो ये तो एक प्रक्रिया है जैसे तुम वस्त्र बदलते हो आत्मा भी देह रूपी वस्त्र बदलती है, और धरती पर अपने कर्म पूर्ण कर मुझमैं मिल जाती है, मैं ईश्वर हूँ!!"

कल्याण हो

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