Wednesday 14 December 2016

कविता-संग तेरे चली आयी

"छोड़ के वो दुनिया संग तेरे चली आयी,
तूने जो पुकारा मुझे मैं तेरी गली आयी-२

रहना अब संग तेरे चाहे तु कुछ भी कहले,
पास आ कर तेरे मैने तो ये प्रीत निभायी

तोड़ के हर बन्धन छोड़ के हर सम्बन्ध

आ कर युं बाहों मैं तेरे ये कली मुस्कुराई

'खुशी' की हर बात हो या गम की बरसात 

साथ तेरे 'मीठी-खुशी' है अब दिलमें छायी

नही रहना ना है जीना ऐ मेरे हमदम बिन तेरे

तड़पता ना छोड़ जाना तुझे इश्क की दुहायी

बहुत रोई है 'मीठी' मोहब्बत मैं ठोकर खाकर

'खुशी' साथ पा कर तेरा आज़ मैने भी है पायी

मिली हर बार दगा वफा के बदले इश्क मैं मुझे

एक तू ही है जिसने की मुझसे हर पल वफायी

ये वादा कर अब तू मुझसे दिलमे रहेगा पल पल
भले न बजी हो  यहॉ अपने मिलन की शहनायी

तोड़ दुनिया की रस्मो रिवाज़ गिरा हर दीवार

थाम कर हाथ तेरा साथ तेरे मैं तो चली आयी

छोंड़ के वो दुनिया संग तेरे चली आयी,

तूने जो पुकारा मुझे मैं तेरी गली आयी-२"

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