Sunday 25 December 2016

ईश्वर वाणी-१७२, देवता, यछ, दानव, रिषि-मुनि तुम ही हो

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों श्रष्टी निर्माण के समय सबसे पहले मैंने जिसको उत्पन्न किया वह है प्रक्रति, प्रक्रति ने ही त्रिदेव (ब्रह्मा,विष्णु व महेश) की रचना की, ब्रह्मा जिसने समस्त प्राणियों की रचना की ब्रह्माण्ड की रचना की, विष्णु जो सभी का पालन पोषण करते हैं अथवा उनकी ही इच्छाशक्ती से समस्त ग्रह नक्छत्र शक्ति प्राप्त कर आकाश मैं विचरण करते हैं, महेश जो संहारकर्ता हैं, जब जब श्रश्टी पर पाप अपनी चरम सीमा पार कर लेता है तब उसका विनाश सुनिश्चित हो जाता है, इस विनाश के बाद फिरसे नयी श्रश्टी का निर्माण होता है!!

हे मनुश्यों ब्रम्हा को ब्रम्ह लोक मैं स्थान प्राप्त है, अर्थात जीवन देने वाला सदा ही उच्च स्थान का अधिकाऱी होता है इसलिये वह अनंत ब्रह्माण्ड मैं ब्रम्ह लोक मैं रहते हैं,

वही विष्णु छीर सागर मैं रहते हैं, ये सागर धरती पर बहने वाला कोई साधारण सागर नही अपितु जिसके पावन जलसे समस्त श्रष्टी का निर्माण हुआ है वहॉ रहते हैं, जल जो जीवन प्रप्त करने व जीवन यापन की प्रथम मूलभूत आवश्कता है, तभी समस्त नदीयों का श्रोत ऊँचे पहाड़ों पर ही है, जहॉ से भगवान विष्णु समस्त धरती को जीवन यापन हेतु जल की व्यवस्था करते है,

महेश जो संहारक है, उनका निवास धरती अर्थीत म्रत्यु लोक है, एक निश्चित समय के बाद सभी को अपना भौतिक शरीर त्यागना ही पड़ता है, इस म्रत्यु लोक मैं सभी की म्रत्यु निश्चित है, संहारक होने व म्रत्यु के कारण उनका स्थान धरती है,

है मनुष्यों इन त्रिदेवों के साथ पत्नी रूप मै त्रदेवीयॉ है जो प्रक्रति है अर्थात जिसके बिना त्रिदेव भी कुछ नही, व अन्य देवता, दानव, यछ, रिषी-मुनि समाज़ का ही प्रतीक है

सत्तकर्मी जो अपने दायित्वों को कुशलता के साथ पूरा करता है वही देवता है,

जो व्यकति अपने लिये नही अपितु अन्य प्राणयों के विषय मैं सोचता व उनका कल्याण करता है, ईश्वर के वचन पर चलता है, वही रिषी-मुनी है,

जो व्यकति समय व स्वार्थ के साथ स्वभाव बदल लेते है वही यछ है,

जो व्यक्ति अपने अतिरिक्त किसी के विषय मैं नही सोचते, सदा अपने हितों को साधने के लिये दूसरों का भी बुरा करने से नही चूकते, छल कपट व झूठ का साथ सदा अपनाते है, निरीहों पर अत्याचार करते है, रक्त रंजित  भोज पदार्थ का सेवन करते है वही दानव है!!

कलियुग मैं निम्न व्यक्ति ही देवता, यछ, रिषी-मुनि व दानव है , ये कोई पारग्रही नही अपितु तुम्हारे कर्म ही तुम्हें ये बनाते है, प्राचीन काल के समय ये ही धरती रहते थे तुमने श्रेश्ठजन से सुना होगा, किंतु ये व्यक्ति उस समय भी ऐसे ही थे जैसे आज तुम हो, और आज भ तुममे ही इनका निवास है, अब तुम इसे पड़ कर सनकर खुद मूल्यांकन करो की तुन खुद क्या हो"

कल्याण हो

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