Wednesday 21 December 2016

ईश्वर वाणी-१७१, भगवान का अर्थ

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों युँ तो तुम नित्य 'भगवान' शब्द कहतै हो, भगवान की पूजा आराधना करते हो किंतु तुम्हें इस शब्द का शाब्दिक अर्थ भी पता है, भगवान और ईश्वर के वास्कविक व आध्यात्मिक अर्थ को समझना मानव जाति के लिये सम्भव नही, इसे केवल पवित्र आत्मा ही जान सकती है किंतु तम्हारे लिये शाब्दिक अर्थ है जिसे तुम जान और समझ सकते हो!!

हे मनुष्यों मैं तुम्हें 'ईश्वर' के शाब्दिक अर्थ के विषय मैं जानकारी दे चुका हूँ किंतु आज़ 'भगवान' शब्द के विषय मैं बताता हूँ,

भ+ग+व+आ+न= भगवान जिसका शाब्दिक अर्थ है,

भ= भाव, भक्ति, भजना
ग= गुन गान, गीत, गायन
व= विश्वास
आ= आस्था
न= नित्य, नियम, नभ, नैतिक

अर्थात भक्ति भाव से गुनगान गीत गायन कर भजना विश्वास आस्था नभ की तरफ नित्य नियम से देखना पुकारना, क्यौंकि नभ मैं ही भगवान रहते हैं और नभ मैं ही हूँ मैं ईश्वर हूँ,

हे मनुष्यों यदि तुम दूर किसी शहर यात्रा पर गये, वहॉ कोई पहचान वाला भी नही, ऐसे मैं तुम्हारे पैसे भी चोर चुरा ले गया, तुम दुखी सोच मैं डुबे की अब वापस घर कैसे जायें कोई व्यकि नही ऐसा जिसको व्यथा सुनायें अपनी जो मदद कर सके,
ऐसे मैं कोई अजनबी तुम्हारी सहायता करे, तुम्हें सकुशल घर तक पहुँचा दे  तो क्या और लोंगोँ से तुम उसकी अच्छाई नही भजोगे, उसके उपकार के प्रति क्रतग्यता नही दिखाओगे, उसके इस नैतिक गुन का गान नही करोगे, जो तुमने उस पर विश्वास किया, आस्था जताई तुम लोंगों को नही कहोगे, चूँकी वो अनजान था इसलिये नभ को देखकर ये नही कहोगे वो भगवान था मेरे लिये उस समय, नित्य नियम से नभ को देखकर उस अनजान का दिल मैं धन्यवाद कहोगे जिसने तुम्हारी समय पर सहायता की,


हे मनुष्यों जैसे एक व्यक्ति किसी जरूरतमंद की सहायता कर उसका भगवान बन जाता है वैसे ही जब समाज व समस्त जीवों को सहायता की आवश्यकता होती है तब मै ही अपने से एक अंश को भौतिक शरीर भारण कर देश/काल/परिस्तिथी के अनुसार जन्म लेने की आग्या देकर जीव मात्र की सहायता करने का आदेश देता हूँ जिसे तुम व समाज भगवान कहता है!!"

कल्याण हो







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