Monday 5 December 2016

ईश्वर वाणी-१६८, मैं ईश्वर हूँ

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुषयों यु तो मैं अजन्मा, अनंनत, अविनाशी हूँ, मैं पावन जल से भी अधिक निर्मल, वायु से भी अधिक पारदर्शी, एक पौधे के सूखे हुये पत्ते से भी हल्का हूँ!!

मैं आकाश से भी अनंनत, सागर से गहरा, तारों से भी चमकीला, अंधेरे से भी गहरा हूँ!!
मैं ही जगत को बनाने वाला, जीवो को बनाने व जीवन देने वाला हूँ, मै ही श्रष्टी हूँ और श्रष्टी की प्रथम रचना मैं ही हूँ मै ही आत्माऔं मैं परम हूँ, जीवो मैं शक्ती मैं सर्व हूँ, आकारों मैं निराकार हूँ, ग्यानियों मै 'महा' हूँ, प्राणियों मै 'श्रेष्ट' हूँ, दिशाऔं मै 'केन्द्र' हूँ, जीवो मैं 'जीवन' हूँ, ऊँचाई मैं 'गगन' और गहराई मैं 'सागर' हूँ, सखों मैं 'संतुष्टी' मैं ही हूँ मैं परमात्मा!!

आज साधारण शब्दों में तुम्हे इसका अर्थ बताता हूँ,

प+र+म= परम
आ+त-म+आ= परमात्मा

प= प्रथम
र= रचना
म= मैं

आ= आदि
त= तत्व
म= मैं
आ= आदी, अनंनत, अजन्मा, अवनाशी, अतिआवश्यक

हे मनुष्यों मै ही श्रष्टी का प्रथम तत्व हूँ, मैने ही श्रष्टी निर्माण किया है जीवो को उत्पन्न किया है, ये सब मुझसे निकल कर मुझमें ही विलीन हो जाते है जैसे सागर के जल से वाष्प बूँद बन जल पुन: सागर मैं गिर उसमैं मिल जाता है,

मैं ही शून्य हूँ जिसका कोई छोर नही होता, जो जहॉ से शुरु वहॉ खत्म होता है, जो कुछ न होकर भी खुद में पूर्ण हूँ, मैं ही सत्य हूँ, मैं ही जीवन हूँ मैं ईश्वर हूँ!!"

कल्याण हो


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