Monday 26 December 2016

ईश्वर वाणी-१७३ तीन सागर

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों धरती पर तीन प्रकार के सागर हैं १-तरल
सागर, २-कठोर सागर, ३-सूखा सागर
हे मनुष्यों वह सागर जिसने धरती के एक बड़े भाग को घेरा हुआ है वह 'तरल' सागर है,
उसी प्रकार धरती पर एक भाग बर्फ से सदा ढ़का हुआ है वह है 'कठोर' सागर,
और जो धरती पर रेगिस्तानी स्थान है वह है 'सूखा' सागर,
जिस प्रकार तरल सागर मैं लहरें आती हैं तूफान आते हैं प्रलय तक होती है
वैसे ही कठोर सागर व सूखा सागर मै भी होता है,
हे मनुष्यों आज़ जहॉ कठोर सागर व सूखा सागर हैं कभी वहॉ तरल सागर होता
था, साथ ही आज़ जो जैसा है हमेशा वैसा भी नही होगा, समय के साथ परिवर्तन
ही प्रक्रति का नियम मैंने निर्धारित किया है,
है मनुष्यों जिस प्रकार धरती पर तीन सागर मौज़ूद है उसी प्रकार समस्त
ब्रमाण्ड मैं भी तीन सागर मौज़ूद है,
तरल आकाशिय दिव्य सागर की रेत से ही ब्रह्माण्ड की व ग्रहों व नछ्त्रों
की रचना हुई है व उनमैं उलब्ध बर्फ व गैस (निम्न वायु) कठोर सागर के कारण
ही है,
हे मनुष्यों क्या तुमने कभी विचार किया है आकाश मैं पत्थर व ग्रहों मैं
पहाड़ मिट्टी व अनेक गैस व बर्फ कैसे आये??
हे मनुष्यों ये सब उन सागरों के कारण ही आये जो अनंत आकाश मैं मौजूद है व
श्रश्टी की उत्पत्ती का कारक,
हे मनुष्यों मैं तुम्हे परहले भी बता चुका हूँ धरती समस्र ब्रह्माण्ड की
प्रतीक मात्र है इसलिये समस्त ब्रह्माण्ड की की एक छोटी सी झॉकी इस धरती
पर ही मौजूद है,
आकाशिय दिव्य सागर आकाश रूप मैं सदा तुम्हारे उपर है और तुम इसके नीचे
ठीक वैसे ही हो जैसे समुन्दर के जीव समुन्दर के नीचे होते है,
हे मनुश्यो जगत  व प्रक्रति का निर्माण करने वाला समस्त ब्रह्माण्ड को
ढकने वाला वह दिव्य सागर मैं ही हूँ मैं ईश्वर सदा तुम्हारे साथ हूँ,

हे मनुष्यों  तभी ईश्वर को याद किया जाता है तो आकाश को देखते हो, जब कोई अपना भौतिक शरीर त्यागता है तब कहते हैं वो उपर चला गया भगवान के पास, मनुष्यें आकाश बन कर मैं सदा तुम्हारे साथ हूँ, पर मुझे उस दिव्य सागर के रूप मैं केवल परन ग्यानी व पवित्र आत्मा ही देख सकती है क्यौंकि  मैं ईश्वर हूँ"

कल्याण हो

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