Tuesday 27 December 2016

ईश्वर वाणी-१७४, मेरे अंश

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों देश/काल/परिस्तिथी के अनूरूप  मैंने ही अपने ही एक
अंश को भौतिक देह धारण कर धरती पर जन्म लेने के लिये भेजा,
देश/काल/परिस्तिथी के अनुरूप तुमने उसे कही मसीहा कहा कही फरिश्ता तो कही
अवतार,

उसने तुम्हें देश/काल/परिस्तिथी के अनुसार वह बातें कही जिन्हें तुम भूल
गये अथवा भुला दिये गये (बुरे कर्मों द्वारा),
हे मनुष्यों जो व्यक्ति उनके द्वारा बतायी गयी सुझाई गई धारणा पर चलने
लगा वह उस पर विश्वास करने लगा मानव ने एक नाम दे दिया धर्म और इस प्रकार
मानव के साथ मुझे भी बॉट दिया,
हे मनुष्यों संसार का प्रथम तत्व मै ही हूँ, मैने ही जगत की रचना हेतु
प्रक्रति की रचना की, प्रक्रति ने ही ब्रम्हा के द्वारा धरती पर जीवों व
जीवन की रचना की, सबको समान बनाया, और जगत के कल्याण के लिये कुछ व्यवस्थायें  बनायी,

किंतु मानव को संसार का प्रहरी बनाया, सभी जीवों का कल्याणकर्ता बनाया, इस प्रकार मैंने मानव धर्म की स्थापना की,
लेकिन समय के साथ शक्ति के मद मैं मानव अपने उन कर्मों को भूल गया, अपने वास्तविक धर्म को भूल गया, जो
मैंने उसके लिये निर्धारित करे थे,और इस प्रकार मानव न सि्र्फ अपनी जाती
का अपितु अन्य जीवों का दोहन करने लगा,
मानव को उसके वास्तविक कर्म याद दिलाने हेतु मै निराकार परमात्मा खुद
उसका मार्गदर्शन कर सकता था किंतु मानव मेरे इस स्वरूप को न सहज़ स्वीकार
करता न ही मेरे द्वारा दी गयी शिछा का प्रचार प्रसार कर अन्य मनुष्यों को
इस पर चलने की प्रेरणा देता,

मैने ही इसलिये अपने ही एक अंश को प्रक्रति द्वारा धरती पर भौतिक शरीर
मैं जन्म कराकर देश/काल/परिस्तिथी के अनुरूप ग्यान का व शिछा का (जो जगत
व प्राणी जाती के हित मै है) प्रचार प्रसार कराया और. अंत: उन्हें भी
भौतिक देह त्यागना पड़ा ताकी मानव जान सके जीवन अमूल्य है किंतु देह सदा
नाशवान है, साथ ही जो व्यक्ति मेरे द्वारा धरती पर जन्म लेने वाले अंश पर
यकिं करते गये, विश्वास करते गये मैंने उनके विश्वास की लाज़ रख कर फिर
यही संदेश दिया 'मैं ईश्वर निराकार हूँ, भौतिकता मैं बधॉ नही हूँ,
अजन्मा, अविनासी, अदभुत, आदि शक्ति मैं ही हूँ, मैं ईश्वर हूँ'!!!"

कल्याण हो

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